Monday, February 23, 2009

स्लमड़ाग कुत्ता करोड़्पति !!!

क्या बक्वास है. जिसे देखो वो आस्कर जीतने के नशे मॅ इस कदर चूर है कि बेहोशी के आलम से बाहर आना ही नही चाहता. देश का बुद्धिजीवी बहुत खुश है. देश का ऐसा युवा बेहद प्रफुल्लित है जो विवेकहीन है. पूरा देश थोथे मजे मॅ मग्न है. अरे कितनी शर्म की बात है कि कोई धारावी मॅ रहने वाले को कुत्ता बताकर उनके जीवन स्तर पर कोई चलचित्र बनाता है. सारी दुनिया के सामने दिखाता है और यह कहता है कि " ये देखो... भारत मॅ क्या हालात है...और वहाँ के लोग कुत्ते जैसा (पश्चिमी मानदण्ड के अनुसार) जीवन जीते हुये भी करोड़पति कैसे बन जाता है." छी: कितने मूर्ख है हम सब कि उनके इस महिमामण्ड़ित उत्सव मॅ हुये अपने इस अपमान पर कितने प्रसन्नचित है???? अरे मेरे देश के लोगो समझो... यह पुरस्कार उस निर्देशक को मिला है जो यह बता सका कि भारत मॅ झॉपड़ी मॅ रहने वाला कुत्ता कैसे रहता है...उस कलाकार को कोई पुरस्कार नही जिसने उस कुत्ते का किरदार निभाया...क्या यह विचार करने के लिये बाध्य नही करता....?

क्या रहमान ने कभी इससे बहतर कोई संगीत नही गढा??? क्या गुलज़ार साहब ने इससे बहतर कोई गीत नही लिखा??? क्या कोई दे सकता है इन सवालॉ के जवाब??? दे तो सब सकते है...पर देना नही चाहते. रहमान भाई हमारे उन शीर्ष कलाकारॉ मॅ से एक है जो पूरी दुनिया मॅ अपना लोहा मनवा चुके है. गुलज़ार साहब के बोल किसी भी उम्र के लोगॉ को नाचने झूमने को मज़बूर कर सकती है. तो क्या अब तक ये दोनॉ कलाकार कुछ ऐसा कर ही ना सके जिसे दुनिया सम्मान नही दे सही??? रहमान ने एक गीत बनाया था :...माँ तुझे सलाम... क्या वो किसी भी रचना से कम है???? नही ऐसा नही है.

यह आस्कर हमारे गाल पर तमाचा है कि देखो ...भारत के पास अभी तक कोई इतना सक्षम निर्देशक नही जो आस्कर मॅ चुने जाने लायक फिल्म बना सके...???

यह हम सब का अपमान है!!!

क्या "तारे ज़मीं पर" फिल्म किसी लिहाज़ से घटिया थी??? हाँ एक तल पर वो उचित नही थी...कि उस का निर्देशन किसी अमेरोकन या फिर किसी अंग्रेज़ ने नही किया था. जबकि तारे ज़मीं पर ने जिस मानवीय भाव को छूआ वो अपने आपमॅ एक अनूठा विषय है... लेकिन आस्कर के लिये वह योग्यता के किसी पयदान पर नही टिकी क्यॉकि वो शुद्ध रूप से भारतीय निर्माण है... और पश्चिम ये कैसे सहन कर ले कि कोई भारतीय कैसे कला का इतना बड़ा सम्मान हासिल करे.

क्या ब्लैक फिल्म किसी लिहाज़ से कम है...नही.
क्या लगान किसी लिहाज़ से कम थी.... नही थी...

हमे यह बात समझनी चाहिये कि कला, ज्ञान, विज्ञान, कौशल का गुण आदि विधाऑ मॅ हम से अधिक समृद्ध सकल विश्व मॅ कोई नही है और हमॅ अपने देश के सम्मान की रक्षा करनी चाहिये. अपना विरोध दर्ज करना चाहिये.

Friday, February 20, 2009

सागर की आवाज़्


आजकल जिसे देखो वही ढोलू (कछुआ) को डांटने चल पड़ता है. यही बात सोचते हुये ढोलू आज अकेला ही सैर को निकला. और घूमते हुये वह एक ऐसे स्थान पर आ पहुँचा जो उसने अबतक देखा ही नहीं था.

उसने देखा की उस जल कोने का सारा पानी काला काला है. समन्दर में होनी वाली जलीय वनस्पति भी लगभग नष्ट हो चुकी थी. और तो और वहाँ पर कोई जलीय जीव भी उसे दिखाई नहीं दिया. अब तो ढिलू को डर लगने लगा कि उसकी माँ जो कहती थी वह सच ना हो जाये.

ढोलू की माँ कहती थी कि मानव हर साल लाखों टन हानिकार रासायनिक तरल, कचरा, हर तरह की गन्दगी और अवशिष्ट पदार्थ समन्दर में फैक आ रहा है. और अगले आने वाले सालों में हमें पीने के लिये काला पानी ही मिलेगा.

अब तो ढोलू को अपने उन सब दोस्तॉ की याद आने लगी जो समन्दर का पानी जीने लायक न रह जाने के कारण मर गये थे. बस दो चार छोटी मछलियाँ ही बची है उसके बचपन के दोस्तॉ में.

ढोलू अब तक उस गन्दे पानी की कैद में फंस चुका था. उसे कोई राह नही सुझाई दे रही थी कि वह सागर में वापिस अपने घार कैसे जा पायेगा???
क्या आप बता सकते हैं???
अगर हाँ तो टिप्पणी कीजिये और बताइये!!!
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