किशोर-वयसंधि की आयु के लोग शराब की ओर रुख कर रहे हैं. एक टीवी चैनल और दैनिक समाचार पत्र मैं यह खबर देखने और पढने को मिली. बात कोई नयी नहीं है. हम सब वाकिफ हैं इस तथ्य से. और कहीं न कहीं चिंतित भी होंगे. आखिर हमारे परिवारों मैं से कोई हो सकता है.
तो क्या समाज जाने अनजाने छूट दे रहा है? क्या हम अपनी अगली पीढी के भविष्य के प्रति सजग नहीं हैं? क्या शिक्षा और समय के अनुरूप कुछ ज्यादा ही आज़ादी दी जा रही है बढते बच्चों को ? क्या हो रहा है परिवारों मैं जो बहुत खतरनाक है? आखिर इस व्यवहारिक परिवर्तन का ज़िम्मेदार कौन है ?
मुझे लगता है कि परिवारों मैं एकांत वास और दूरियां बनाने का जो रिवाज़ चल पड़ा है हमारे समाज मैं, यह बदलाव कमोबेश उसी का नतीजा है. ऐसा क्यूँ होता है कि आजकल हर किसी को अपने लिए अलग आकाश की ज़रूरत पद रही है ? चाहे उसे उसकी आवश्यकता हो या न हो? कहीं न कहीं ये अलग थलग रहना, खुद मैं उलझे रहना और तनाव ही ऐसे मनोविकारों के कारण बन रहे हैं?
परिवार के एक इकाई के रूप मैं टूटने और सामाजिक दायित्व वाली सोच का घटना भी कहीं न कहीं इसका मूल कारण है. आये जागें और सम्हालें उन पौधों को जिन पर भविष्य के विकास के फल लगने हैं. हम सभी अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर ऐसे बच्चों को सहारा दें उन्हें सही दिशा दिखाएँ. हो हल्ला कर देना ही काफी नहीं होता. कंधों पर ज़िम्मेदारी का भोझ रखना भी हमको सीखना है और ऐसी समस्याओं से निपटना है.
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