(पनर्प्रस्तुति)
कान्हा कलयुग मॅ ना आना
कलजुग मॅ ना आना ओ मेरे कृष्ण-कन्हैया,
इस कलजुग मॅ ना आना ओ बंसी के बजैया,
यहाँ द्रोपा का आँचल तज कर जींस बढ़ानी होगी,
सत्यम के घर बन्दी होकर लाज बचानी होगी,
प्रेम-भाव के बदले तुमको देना होगा रुपिया,
मुरली तज कर रहमन के गीतॉ पर करना होगा ता-ता थैया,
तो कलजुग मॅ ना आना ओ मेरे कृष्ण-कन्हैया
रणछोड़ तो पहले से हो अब घर भी तजना होगा,
प्रभु नाम को डाल परे यहाँ धन-धन जपन होगा,
लौह-काठ के रथ को भूल अब कार चलानी होगी,
कैसे भी अब जैसे-तैसे नैया पार लगानी होगी,
चक्र सुदर्शन तज कर बन्दूक चलानी होगी,
सत्य-असत्य अब भूल सभी कुछ लाज बचानी होगी,
बनना होगा तुमको इस भारत का खेवैया,
तो कलजुग मॅ ना आना ओ मेरे कृष्ण-कन्हैया
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