Friday, February 20, 2009

सागर की आवाज़्


आजकल जिसे देखो वही ढोलू (कछुआ) को डांटने चल पड़ता है. यही बात सोचते हुये ढोलू आज अकेला ही सैर को निकला. और घूमते हुये वह एक ऐसे स्थान पर आ पहुँचा जो उसने अबतक देखा ही नहीं था.

उसने देखा की उस जल कोने का सारा पानी काला काला है. समन्दर में होनी वाली जलीय वनस्पति भी लगभग नष्ट हो चुकी थी. और तो और वहाँ पर कोई जलीय जीव भी उसे दिखाई नहीं दिया. अब तो ढिलू को डर लगने लगा कि उसकी माँ जो कहती थी वह सच ना हो जाये.

ढोलू की माँ कहती थी कि मानव हर साल लाखों टन हानिकार रासायनिक तरल, कचरा, हर तरह की गन्दगी और अवशिष्ट पदार्थ समन्दर में फैक आ रहा है. और अगले आने वाले सालों में हमें पीने के लिये काला पानी ही मिलेगा.

अब तो ढोलू को अपने उन सब दोस्तॉ की याद आने लगी जो समन्दर का पानी जीने लायक न रह जाने के कारण मर गये थे. बस दो चार छोटी मछलियाँ ही बची है उसके बचपन के दोस्तॉ में.

ढोलू अब तक उस गन्दे पानी की कैद में फंस चुका था. उसे कोई राह नही सुझाई दे रही थी कि वह सागर में वापिस अपने घार कैसे जा पायेगा???
क्या आप बता सकते हैं???
अगर हाँ तो टिप्पणी कीजिये और बताइये!!!

1 comment:

संगीता पुरी said...

कछुए की कहानी के बहाने बहुत सही जगह पर आपने सबका ध्‍यान आकृष्‍ट करवाया.....अब समय हो गया है कि इन सब बातों पर मानव जाति गंभीरतापूर्वक सोंचे....ध्‍ान्‍यवाद।

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