Saturday, October 16, 2010

बदलता भारत : उदारवादी राष्ट्र से पूंजीवादी राष्ट्र की ओर

भारतवर्ष की तस्वीर हमारे संविधान बनाने वालों ने उदारवादी लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप मैं उकेरी। कुछ दशकों तक तो हम अपने देश को इसी राह पर लेकर आगे बढे। परन्तु अगर हम पिछले दो दशकों पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि अब हमारा रुझान अमेरिका की पूंजीवादी आर्थिक नीतियों से प्रभावित हो रहा है।

दो दशक पूर्व तक की सरकारें देश के विशाल माध्यम वर्ग को आधार मान कर उसकी सामाजिक और आर्थिक उन्नति को केंद्र मानते हुए नीति निर्धारण करती रही हैं। पर इतर कुछ ऐसा हनी लगा कि वो विशाल मध्य वर्ग असुरक्षित होता जा रहा है।

इस परिवर्तन का सबसे चौंका देने वाला प्रभाव यह पड़ा कि धन के तो अम्बार लग गए पर वो धन कुछ ख़ास ही लोगों की तिजोरियों की शोभा बढाने के काम आने लगा।

यकायक सरकारी नौकरियां घटने लगीं। जो लोग सरकारी नौकरियों की बदौलत पीढ़ी दर पीढ़ी अपना जीवन यापन करते आ रहे थे उनके पैरों तले धरती खिसकने लगी। ऐसा क्यों हो रहा है ? यह एक बहुत गंभीर सवाल है। जो सरकारी पद समाप्त कीये जा रहे हैं क्या उनसे सम्बद्ध कार्य अब नहीं रहा ? नहीं ऐसा कतई नहीं है। काम है।
तो फिर सरकारी नौकरियों के लिए रिक्तियों की संख्या घटी क्यूँ जा रही है? क्या आबादी कम हो रही है? जो कि काम करने वाले भी कम ही चाहियें? नहीं, ऐसा भी नहीं है? या फिर सरकारी खजाने मैं वेतन देने के लिए धन का ही टोटा है ? नहीं, ऐसा भी नहीं है? फिर कारण क्या है? कुछ प्रबुद्ध लोग तर्क देते हैं कि ठेके दारी के अंतर्गत काम करवाना अधिक लाभकारी है। इस लिए पक्की नौकरी न देकर ठेकेदार के द्वारा कार्य को संपन्न करवाना चाहिए।

ठेका लेने वाले लोग केवल अपने लाभांश को मछली आँख मानकर बस उसी का ध्यान लखते हैं। उनको कार्य की गुणवत्ता से कोई लेने-देना नहीं होता। ऐसे बहुतेरे उदहारण हम आये दिन दिल्ली महानगर मैं गिरते पुलों, टूटी सड़कों के रूप मैं देखते ही रहते हैं। क्यूंकि ठेकेदार ठेका लेने के लिए कितनी भी घूस दे सकता है और जितनी ज्यादा घूसरशी होगी वो गुणवत्ता उतनी ही कम करके काम को जैसे तैसे पूरा करेगा। और ठेकेदारों से काम इसलिए भी करवाते हैं कि काम कम समय मैं हो जाता है क्यूंकि सरकारी कर्मचारी काम करने के मामले मैं उतने चुस्त-दुरुस्त नहीं होते जितनी कि प्राइवेट कामगार। कुछ हद तक मैं इस कथन से सहमत हूँ। पर क्या इसका समाधान नहीं खोजा जाना चाहिए था?

आज जब हमारा प्यारा भारत देश एक विश्व महाशक्ति बनने की दिशा मैं अग्रसर है, हमे अपने देशवासियों के लिए उत्तम स्वाथ्य सुविधाएँ , विश्व स्तरीय परिवहन सुविधाएँ , बैंकिंग व्यवस्थाएं, रेल तंत्र, सुरक्षा और उद्योग, सूची तो बहुत लम्बी होगी, विकसति करनी हैं। क्या वह पूरा काम हम मध्य वर्ग के भविष्य को सुरक्षित किये बिना हम इन ठेकेदारों के थोथे भरोसे के बल पर कर पायेंगे?

सारकारी तंत्र को जागना होगा। निजी राजनैतिक स्वार्थों के खेल को दरकिनार करके इस दिशा मैं ठोस कदम उठाना ही होगा। नहीं तो फिर से हमारा देश पुराने सूदखोर महाजन जैसे आधुनिक महाजनों के मायाजाल मैं फंस जाने वाला है ।

यदि कोई सजग प्रयास नहीं किया गया तो .... फिर ... क्रान्ति होगी ... जैसे रूस मैं हुई थी .... अक्टूबर क्रान्ति ॥ खुनी क्रान्ति होगी ... और गरीब अपनी गरीबी को खून से धोने से भी नहीं हिचकेगा।

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